गोंडा के बेसिक शिक्षा विभाग में वित्तीय अव्यवस्था की पृष्ठभूमि
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गोंडा जिले के बेसिक शिक्षा विभाग में वित्तीय और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं की स्थिति गंभीर रूप ले चुकी है। जिले के 8200 परिषदीय शिक्षकों और 700 शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को समय पर वेतन न मिलने के कारण उनकी रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो रही है। यह समस्या जून 2024 से शुरू हुई, जब विभाग के तत्कालीन वित्त एवं लेखाधिकारी संजय चतुर्वेदी का स्थानांतरण कर दिया गया। चतुर्वेदी के स्थान पर नए अधिकारी की नियुक्ति न होने और बाद में नियुक्त किए गए अधिकारी के कार्यभार ग्रहण न करने से यह समस्या और गहराई।
स्थानांतरण और आदेशों की अनदेखी
संजय चतुर्वेदी का स्थानांतरण 30 जून 2024 को हुआ। हालांकि, आयुक्त देवीपाटन मंडल द्वारा 27 जुलाई 2024 को आदेश जारी कर चतुर्वेदी को उनके पद पर कार्य करने का निर्देश दिया गया, लेकिन यह आदेश प्रभावी नहीं हो सका। इसके बाद सितंबर 2024 में सिद्धार्थ दीक्षित को वित्त एवं लेखाधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया। हालांकि, उन्होंने समय पर कार्यभार ग्रहण नहीं किया, जिससे विभाग में लंबित वेतन भुगतान की समस्या और अधिक गंभीर हो गई।
वित्तीय अव्यवस्थाओं का दुष्प्रभाव
वेतन भुगतान में हो रही देरी का असर न केवल शिक्षकों और कर्मचारियों पर पड़ा है, बल्कि यह विभाग की कार्यक्षमता को भी बाधित कर रहा है। शिक्षकों ने बताया कि वेतन न मिलने के कारण उन्हें अपने दैनिक खर्चों और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में कठिनाई हो रही है। इसके अलावा, छात्रों की पढ़ाई पर भी इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि शिक्षकों का मनोबल गिर रहा है।
सिद्धार्थ दीक्षित की भूमिका और विवाद
कार्यभार ग्रहण में देरी
सिद्धार्थ दीक्षित ने 30 सितंबर 2024 को वित्त एवं लेखाधिकारी के पद पर नियुक्ति के बावजूद दो महीने तक अपने पद का कार्यभार ग्रहण नहीं किया। 10 दिसंबर 2024 को उन्होंने आकस्मिक अवकाश का आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। हालांकि, विभागीय अधिकारियों ने उनके इस आवेदन को संदिग्ध पाया।
फर्जी प्रमाण पत्र का मामला
सिद्धार्थ दीक्षित द्वारा प्रस्तुत चिकित्सा प्रमाण पत्र को जांच में फर्जी पाया गया। यह प्रमाण पत्र एक बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा जारी किया गया था, जो नियमों के खिलाफ है। प्रमाण पत्र की वैधता पर सवाल उठाते हुए, जिला प्रशासन ने इसे खारिज कर दिया। इसके साथ ही, सिद्धार्थ दीक्षित के खिलाफ विभागीय जांच की मांग की गई है, ताकि उनके आचरण की पूरी तरह से समीक्षा की जा सके।
अनुशासनहीनता के आरोप
सिद्धार्थ दीक्षित पर आरोप है कि उन्होंने विभाग के नियमों और निर्देशों की अवहेलना की। न केवल उन्होंने अपने कार्यभार को समय पर ग्रहण करने में देरी की, बल्कि अवकाश के दौरान अपने दायित्वों को निभाने में भी लापरवाही बरती। उनकी इस अनुशासनहीनता के कारण विभाग के कामकाज में बाधा उत्पन्न हुई और कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल सका।
खंड 3: प्रशासनिक लापरवाही और विभागीय समस्याएं
वेतन भुगतान में देरी का प्रभाव
गोंडा जिले के शिक्षक और कर्मचारी लंबे समय से वेतन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और वित्तीय प्रबंधन में कमी के कारण उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। कई शिक्षक और कर्मचारी अपने परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज लेने पर मजबूर हो गए हैं।
विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल
यह घटना गोंडा जिले के बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। एक ओर शिक्षकों और कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर विभाग के अधिकारी अपने दायित्वों का सही तरीके से पालन नहीं कर रहे हैं।
समस्या समाधान की दिशा में कदम
विभागीय सूत्रों के अनुसार, आयुक्त देवीपाटन मंडल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। साथ ही, वित्तीय और प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए एक विशेष समिति का गठन करने की सिफारिश की गई है।
खंड 4: भविष्य की राह और सुधार के सुझाव
जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई की आवश्यकता
पत्र में स्पष्ट रूप से मांग की गई है कि सिद्धार्थ दीक्षित के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। उनके द्वारा प्रस्तुत फर्जी चिकित्सा प्रमाण पत्र और कार्य में लापरवाही को देखते हुए, यह आवश्यक है कि उनके आचरण की पूरी जांच हो। इसके साथ ही, विभाग में योग्य और ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि ऐसी समस्याओं की पुनरावृत्ति न हो।
वेतन भुगतान की प्रक्रिया को सरल बनाना
शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए एक डिजिटल प्रणाली विकसित की जा सकती है, जिससे वेतन भुगतान में देरी न हो और सभी वित्तीय लेन-देन का रिकॉर्ड सही तरीके से रखा जा सके।
प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता
गोंडा जिले के बेसिक शिक्षा विभाग में सुधार के लिए प्रशासनिक स्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के साथ-साथ, वित्तीय प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए नई नीतियां लागू की जानी चाहिए।
शिक्षकों और कर्मचारियों का सहयोग
विभागीय समस्याओं को हल करने में शिक्षकों और कर्मचारियों का सहयोग भी महत्वपूर्ण है। उनकी समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाने के लिए एक हेल्पलाइन या शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जा सकता है।
गोंडा जिले के बेसिक शिक्षा विभाग में वित्तीय और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं ने न केवल शिक्षकों और कर्मचारियों की जिंदगी को प्रभावित किया है, बल्कि विभाग की साख को भी नुकसान पहुंचाया है। सिद्धार्थ दीक्षित जैसे अधिकारियों की लापरवाही और अनुशासनहीनता ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है।
हालांकि, प्रशासन द्वारा इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ऐसी समस्याएं भविष्य में न दोहराई जाएं। शिक्षकों और कर्मचारियों को समय पर वेतन मिलने के साथ-साथ, विभाग की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।
यह खबर गोंडा के बेसिक शिक्षा विभाग की वर्तमान स्थिति और उसके समाधान की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का एक व्यापक विवरण प्रस्तुत करती है। उम्मीद है कि प्रशासन इन समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उचित कदम उठाएगा।