कुमाऊं विश्वविद्यालय-मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जैव फ्लॉक विधि का प्रयोग करते हुए उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की
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कुमाऊं विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जैव फ्लॉक विधि का प्रयोग करते हुए उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।
कुमाऊँ विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपनाई गई जैव फ्लॉक (Biofloc) तकनीक के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। हाल ही में इस तकनीक के माध्यम से उत्पादित 30 किलोग्राम मछली का सफल विक्रय किया गया जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।
जैव फ्लॉक तकनीक जल की गुणवत्ता बनाए रखते हुए सीमित स्थान में अधिक मछली उत्पादन की क्षमता प्रदान करती है। इस पद्धति के माध्यम से विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन को व्यावसायिक दृष्टि से भी लाभप्रद बनाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। इस सफलता से प्रेरित होकर भविष्य में उत्पादन और विक्रय को और अधिक बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है।
*जैव फ्लॉक तकनीक क्या है?*
यह एक उन्नत जल कृषि तकनीक है, जिसमें माइक्रोबियल फ्लॉक्स के माध्यम से पानी की गुणवत्ता को नियंत्रित किया जाता है और पोषक तत्वों का पुनः उपयोग किया जाता है। इससे पारंपरिक मत्स्य पालन की तुलना में कम जल और अधिक उत्पादन संभव हो पाता है।
*विश्वविद्यालय का लक्ष्य*
इस सन्दर्भ में कुलपति प्रो. दीवान एस. रावत ने कहा, “इस केंद्र की स्थापना तीन प्रमुख उद्देश्यों को ध्यान में रखकर की गई थी। पहला, हमारे विद्यार्थियों को जैव फ्लॉक तकनीक के माध्यम से सतत मछली पालन का प्रशिक्षण देना, दूसरा नैनीताल की विलुप्त हो चुकी स्थानीय मछली ‘स्नो ट्राउट’ को पुनर्जीवित करना, और तीसरा, उन सभी लोगों को प्रशिक्षित करना जो आत्मनिर्भरता के लिए इस तकनीक का उपयोग करना चाहते हैं।